(१)
बातों का थम जाना
रुकना होता है साँसों का
बातों का खत्म होना
उस सिलसिले को काट
देता है
जन्म से ही हम जिससे
नाभिनालबद्ध होते हैं
बातें खत्म होने से
माँस और खून का
स्वाद चला जाता है
अस्थि-मज्जा बेजान
हो जाते हैं
कि शिकारी जानवरों तक की
दिलचस्पी खत्म हो
जाती है हम में
बातें खत्म इसलिए
नही होतीं
कि सिलसिले को जारी
रखा जा सके
जिया जा सके बहने की
तरह
बातों का होना किसी
का होना होता है
किसी का जीना होता
है हमारी वजह से
(२)
बातें होती हैं
पर हम कह नहीं पाते
डरते हैं कि जुबान से ढुलककर
डरते हैं कि जुबान से ढुलककर
कहीं खो न दे अपना
नमक
असल में जब बोल नहीं
पाते
तब बेचैनी से ढूँढ रहे होते हैं सही तरीका
उसे कहने का
जैसे सद्य जन्मा बच्चा
बोल नहीं पाने के कारण
रोना शुरू कर देता
है
हम भी जब नहीं बोल
पाते
तब रो रहे होते हैं
पर डरते हैं
कहीं आँखों से
ढुलककर
स्वाद खो न दे अपना
(३)
बातें भी रोती हैं
कलपती-छटपटाती हैं
कराहती हैं
सिर पटककर जान दे
देना चाहती हैं
जब वे खो देती हैं
अपना असर
बेअसर होने का डर
मौत से भी पीड़ादायक
होता है उनके लिए
पर ऐसा करती नहीं
वे कुरेद-कुरेद कर
अपनी केंचुली उतारती
हैं
हासिल करती हैं नया
रूप
अपने ही खिलाफ करके
संघर्ष
झुठला देती हैं
वे बिसूरते रहने को
(४)
कहते हैं
एक बार बोली गई बात
अनंत काल तक रहती
हैं जिंदा
इस तरह हम रहते
हैं जिंदा
अनंत काल तक
अपने स्याह-सफ़ेद
वजूद के साथ
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