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Saturday, December 25, 2010

शीर्षक विहीन दो कवितायें

1. उसे आश्चर्य होता है
    यहाँ हर दरवाजे पर
    अखबार देख कर
    वह कहता है
    आज भी
    उसका गांव
    एक ही अखबार
    पढ़ता है

2. मेरी गरीबी
     मुझमें
     आगे बढ़ने का
     हौसला भरती है
     पर
     अमीर बनने का शौक
     मुझे हर बार
     पीछे धकेल
     देता है

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